लिट्टी चोखा का महात्योहार – बक्सर की पंचकोसी यात्रा

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सुबह- सुबह  कुहासा में गाड़ी  रेंगने  के बाद बक्सर के बनते हुए रोड  में घुसते ही सुकून मिला , सुकून इसलिए की अब सूरज की किरण दिख रही है और अब आगे की गाड़ी का सहारा लेकर कार को बढ़ाना नहीं पड़ेगा।  बक्सर में कुछ ऐसे लोग है  जिनके वजह से ये सब कुछ मुमकिन हो पाया, रास्ते में ही  मेले की कहानी सुन चुके थे मगर सुनने और देखने में जो फर्क होता है , वही फर्क लिख कर बताने की कोशिश है।

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मालूम चला कि गाड़ियों की एंट्री बंद है, सिर्फ दो चक्का ही मार्किट में जा सकता है।  तो कार को लगाकर आराम दे दिया गया , बेचारे ने ऐसे भी बहुत मेहनत की थी।  फिर हम पहुंचे बक्सर के घाट पर, जहाँ ठण्ड में भी औरतें , बच्चें  और आदमी  नहाकर  पूजा कर रहे थे।  हम तो वहां इस नज़ारे को कैद ही करने आये थे , तो नांव का सहारा लिया और चल पड़े बक्सर के गंगा मैया के दर्शन करने। थोड़ी निराशा हुई , पोस्टर तो मेले को लेकर बड़े- बड़े लगे थे मगर नमामि गंगे की बात जो सरकार करती है, वो शायद धरातल तक पहुंच नहीं पाई। नाले का पानी गंगा को मटमैला कर रहा था , घाटों पर सफाई और व्यवस्था की कमी थी।  लेकिन उम्मीद है सरकार  और बक्सर के लोग, वहां, साथ ही यहां  आने वाले लोग इसे अपना उत्तरदायित्व समझ कर साफ़ रखने की कोशिश करेंगे।


बढ़ते है आगे और जानते है पंच  – कोसी मेले की कहानी।  जैसे हमनें  सबसे सुना , माना  जाता है कि  श्रीराम विश्वामित्र के साथ जब बक्सर आये थे , तो उस यात्रा में वो पांच जगह रुके थे।  उन पाँचों जगह में उन्होंने वहां के क्षेत्रीय खाना बनाकर खाया था।  इस पांच कोस की यात्रा में उनका आख़री  पड़ाव  चरित्रवन था और गंगा में नहाकर , शिवजी की पूजा करके उन्होंने यहाँ लिट्टी और चोखा बनाकर खाया था।  तब से ये पंच कोसी का मेला उन पांचों जगहों पर भोग लगाने की प्रथा रही  है।  संत लोग पाँचों पड़ाव की यात्रा अहिरौली स्थित पहले पड़ाव से शुरू  करते हैं।  हर साल ये विवाह पंचमी के अवसर पर मनाया जाता है।  

ये कहानी जानने तक हम अपनी नाव की सवारी कर चुके थे , रामरेखा घाट पर उतर कर हम किला मैदान के तरफ बढ़े  और जैसे ही मोड़ पर पहुंचे, रास्ते के किनारे सभी बैठ कर लिट्टी बना रहे थे।  कहीं शुरुआत हो रही थी , तो कहीं  लिट्टी गोईठा  पर सेका  जा रहा था। किला मैदान तो पूरी तरीके से भरा हुआ था, क्या औरत , क्या बच्चे और क्या पुरुष , हर कोई मिल कर लिट्टी सजाने में व्यस्त था।  प्रसाद की तरह लिट्टी मांगने पर मिल भी रहा था, तो हमनें भी दस लिट्टी मांग कर इकट्टा कर लिया।

 बाक़ी जो हम समझ सकते थे , हमने उसे undiscovered  पर दिखाने की कोशिश की।  जल्द ही पूरा  वीडियो भी आ जाएगा।  बस उम्मीद करते है कि ऐसे ऐतिहासिक मेले को उसकी गरिमा के अनुसार सुविधा मिले और सिर्फ राज्य ही नहीं , राष्ट्रीय स्तर  पर भी इसकी पहचान हो।

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