दो दिन से बस वक़्त ही निकाल रही हूं इसे लिखने के लिए। तो लॉकडाउन के बाद ये पहली बार बिहार लोकल का सफर कर रही थी, जनता कर्फ्यू के एक दिन पहले की कहानी मैंने बताई ही थी।
तो दिन था मंगलवार और साथ में गणतंत्र दिवस। अब तो टिकट भी पहले ही ऑनलाइन बुक करना पड़ा। मुझे लगा चलो मैं तो फ़ोन चलाती हूं, मगर ये लोकल से सफ़र करने वाले सभी लोग क्या ऑनलाइन टिकट करवा पा रहे होंगे। लेकिन पता चला कि reservation counter से पहले ही आकर टिकट करवाया जा सकता है। मतलब, अगर टिकट है तो सीट मिलना तय है, और हुआ भी ऐसा कि सीट मुझे मिल गई, गेट के सामने वाली चार सीटर पर सबसे किनारे, खिड़की से बहुत दूर। अब ये जो खिड़की से दूरी होती है ये आपको या तो आसपास के लोगों के चेहरे देखने पर मजबूर करती है या फिर फोन। तो जनाब, हमारा तो फोन भी डिस्चार्ज की हालत में था, फोन को चुपचाप बैग में रख दिया और ऐसे ही आते – जाते लोगों पर नज़रे जाने लगी।
एक दो स्टेशन के बाद चार लड़कियां और एक लड़का साथ में चढ़े और तभी पहले से सीट पर बैठे बंदे से अपने सीट मिलाने लगे। ‘ हमारा सीट 34, 35, 40 भी है, आप यहां कैसे बैठे है? ‘
‘ अरे हमको आगे चढ़ना था, मिला कर बैठ जाते है ना
” ठीक है। ‘ इसी के साथ चार की सीट पर पांच लोग बैठ गए, मुझे और किनारे खिसकना पड़ा।
‘ किधर जा रहे हो सब ? ‘पहले से बैठे हुए लड़के ने उस ग्रुप के लड़के से पूछा।’ बिहार पुलिस की दौड़ का सिलेक्शन है कल , उसी के लिए पटना जा रहे हैं ।’
‘ लड़का लोग का सिलेक्शन तो पहले ही हो गया था, ये अब कौन सा नया है ?’
‘ अरे नहीं भैया, लड़की सब का सिलेक्शन है, हम बस साथ में जा रहे हैं, ये लोग का दौड़ है। बहुत मेहनत की है सब।’
‘ अच्छा लड़की सब का है, बहुत आसान होता है ई लोग का दौड़ , कम लड़की भी होगी। हो जाई आराम से । ‘
उसके बाद बात सिलेक्शन से सरकारी नौकरी की कमी और उसमें होने वाले सिलेक्शन में धांधली पर चली गई। इनकी बात इतने ज़ोर की हो रही थी कि आसपास बैठे लोग भी अब इसमें हिस्सा लेने लगे। बात अब लड़की और लड़के के नौकरी पर आ रही थी, धीरे – धीरे मुझे भी इनकी बातों में बड़ा ही इंटरेस्ट आ रहा था। भले मैंने कुछ नहीं बोला, मगर एक – एक बात बड़े ध्यान से सुन रही थी। लड़कियों ने अपने पूरी तैयारी के बारे में बताया, बहुत सी उम्मीद लिए सब आगे के लिए तैयार थी। तभी दूसरे ओर के लड़के ने कहा, ‘ पुलिस में लड़की लोग को आराम है, भागदौड़ उनसे तो करवाता है नहीं, एक आदमी तो दस लड़कियों के बराबर काम कर लेगा। किसी भगदड़ में तो लड़की को जाने नहीं देगा। बस चुपचाप बैठना है और इज्ज़त के साथ पैसा भी मिलेगा और घर के काम से भी तो छुटकारा मिल जाता है।’
‘ ऐसे कैसे भैया, भारत के ही है ना आप? महिला सैनिकों को नहीं देखा है क्या, या रानी लक्ष्मी बाई को नहीं जानते है? ‘ एक लड़की ने तपाक से कहा।
‘ गलत बोल रहे है भैैया आप, लड़की लोग भले ही शारीरिक तरीके से थोड़ी कमज़ोर होगी मगर दिमाग में कोई नहीं काट सकता ‘, साथ में जा रहे उस लड़के ने कहा।
‘अरे, आजकल नौकरी वाली लड़की सब का अलग होता है, घर पर आकर काम नहीं करती हैं। कहने लगेगी कि हम भी बाहर से थक कर आए है, तुम खाना बनाओ।’ कह कर वो लड़का हंसने लगा।
‘ तो वो नहीं थकेगी क्या, मदद कर ही देगा तो क्या होगा। आजकल लड़की लोग कहा पीछे है, हमारे गांव में देखिए सब लड़की ही बढ़िया से घर चला रही है , ‘दूसरी लड़की ने जवाब दिया।
ऐसा करके सबके एक के बाद एक तर्क आने लगे, अंत तक उस लड़के को भी बात माननी पड़ी और इन लड़कियों का साथ दिया इनके साथ आए लड़के ने, जो बार – बार कहता कि लड़कियों को मौका मिलने का देरी है , नहीं तो लड़कों से ज़्यादा लड़कियां ज़िन्दगी में कुछ करने के लिए गंभीर होती है। सब बातों को एक कहानी बताना बड़ा मुश्किल सा लग रहा है, मगर वहां बिना एक शब्द बोले मैंने उन चारों लड़कियों के अंदर की लगन और जज़्बे को समझा और उतरने से पहले चारों के तरफ़ घूम कर कहा ‘ मेरे ओर से भी शुभकामनाएं, ये ना हुआ तो कुछ और सही, तुमलोग पक्का कुछ कर लोगी, मुझे विश्वास है ।’
सबने अचानक ये सुना तो चौंक कर मेरी ओर देखने लगे मगर मुस्कुरा कर सबने एक साथ एक सुर में ‘ थैंक यू ‘ बोला।ये सुनकर मैं भी मुस्कुराते हुए दानापुर स्टेशन पर उतर गई।
” ये ना हुआ तो कुछ और सही, तुमलोग पक्का कुछ कर लोगी, मुझे विश्वास है ”
These words are enough to motivate anyone 🙂
बाकि बिहार लोकल की और कहानियों का इंतज़ार है, फ़र्क नहीं पड़ता कितने महीनों बाद लिखो।