ज़िन्दगी में ‘ सीरियस मेन ‘ देखना ज़रुरी है

Serious men

ज़िन्दगी में अगर किसी चीज़ का स्ट्रेस ना हो तो जीवन में कुछ करने की उम्मीद नहीं मिलती। मेरे पापा हमेशा कहते है कि जो बच्चा कमी में जीता है, वो आगे कुछ ना कुछ जरूर करता है क्योंंकि उसे एक उम्मीद रहती है उस कमी को पूरा कर अपने जीवन को बेहतर करने की। मगर ये जो कमी और उम्मीद की लड़ाई है, उसमें दबाव और तनाव के बीच अंतर कम हो जाता है।

आजकल मेडिकल, आईआईटी की लड़ाई में कितने लोग अपने असली कला और गुण को बिना पहचाने बस बचपन से दौड़ में लगे हैं। कहने को तो इस विषय पर कई फिल्में बन चुकी है मगर ‘ सीरियस मेन ‘ में कुछ तो ख़ास है। एक बार मैंने अपने पापा को एक मेसेज भेजा था, जिसमें पैरेंट्स के ओवर एक्सपेक्टेशंस में एक बच्चा जो शायद कुछ और कर सकता था लेकिन वो जीवन में हार गया, ऐसी ही कुछ कहानी थी। मेरे पापा ने एक दिन गुस्से में मुझे कहा कि पैरेंट्स अपने बच्चों को हर चीज़ देते है, वो भी बिना बोले, बेहतर शिक्षा, बेहतर लाइफस्टाइल, तो बच्चे को भी ख़ुद को उस लायक बनाना चाहिए कि वो अपने पैरेंट्स का सपना पूरा कर सके। शायद वो अपनी जगह सही थे, क्योंंकि वो सेकंड जेनरेशन है जिसने पढ़ाई मुश्किल से की, और पढ़ाई का महत्व समझा।

अलग – अलग घटनाओं के मेल से सजी ये फ़िल्म सचमुच कई सवालों के जवाब देती है, जैसे caste system पर भेदभाव, रिजर्वेशन की असलियत, समाज और ऑफिस में लोगों के अनुक्रम के हिसाब से उनको मिलने वाली इज्ज़त । हर कोई अपने बच्चे को एक एक्स्ट्राऑर्डिनरी बच्चा बनाना चाहता है, उसके लिए वो मेहनत भी बहुत करते हैं, लेकिन उस कॉम्पटीशन के वजह से शर्मा जी के बेटे वाला ताना हर बच्चे को अपने घर में सुनने जरूर मिलता है। तो अगर लाईफ में किसी ‘serious men’ से आप भी प्रेरित है तो ये फ़िल्म देख ही लीजिए शायद सोच में बदलाव आ जाएगा। ये फ़िल्म मनु जोसेफ बुक पर आधारित है और सुधीर मिश्रा द्वारा निर्देशित है। देख कर अपनी राय यहां जरूर लिखना।

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