इस गांव में शिक्षा कितनी पहुंची होगी?

जिस दिन हम रोहतासगढ़ गए थे, उसी दिन नीचे लौटते वक़्त हमनें इस गांव में लंच किया। लंच का वक़्त शाम के पांच बजे हुआ, क्योंकि हमें लौटने में देरी हो गई। गांव में जाते ही हमें एक खटिया दिया गया जिसपर हम बैठ कर थोड़ा सुस्ताए, फिर नीचे चादर बिछा कर हमनें एक स्वादिष्ट भोजन किया।

वहां के लोगों ने खातिरदारी में कोई कमी नहीं की। खाना खाने के बाद मैंने वॉशरूम जाना चाहा, क्योंकि अभी कैंपस दूर था और पहाड़ पर कोई ऐसी जगह मिली भी नहीं थी जहां हम टॉयलेट जा सकें।

घर की एक महिला से काजल ने बात की, उन्होंने कहां कि हमें खेत में जाना पड़ेगा। मैंने उनसे साफ़ – साफ़ कहा मुझे बस पेशाब लगा है, उसके लिए भी घर में कोई बंदोबस्त नहीं। उन्होंने हंस कर कहा, जी नहीं, आपको उसके लिए भी खेत में ही जाना पड़ेगा।

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फिर एक दस – बारह साल की बच्ची के साथ हम और काजल जाने लगे। वो बच्ची ने अपने मोहल्ले को पार करके, बीच में, एक सड़क को भी पार करवाया और एक जंगल के बीचोबीच हमें ले गई। मैंने उससे पूछा,’ तुम हमेशा यही आती हो? पेशाब करने भी?” हां ‘ कहकर वो चुप हो गई।

लौटने वक़्त मैंने उससे सवाल किया कि स्कूल जाती हो? उसने अपने उंगली से अपना स्कूल दिखाया, ‘ अभी तो सब बंद है न, वही हमारा स्कूल है। गांव के सभी बच्चे वहां पढ़ने जाते है ।’ उसके उंगली के अंत में उस गांव में एक ही छत वाली building दिखाई दे रही थी, सर्व शिक्षा अभियान के तहत शायद वो एक कमरे का मकान बना था जहां उस वक़्त गाने बज रहें थे। मालूम नहीं इस गांव के बच्चे कितने साक्षर हैं, जहां अब तक शौचालय नहीं पहुंच पाया, शिक्षा कितनी पहुंची होगी। और तभी सामने एक बड़े से जंगली मेंढक को देखकर हम तीनों रुक गए। मेरे मन बस एक ख्याल आया कि कैसे ये रोज़ इस जंगल में आती होगी।


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