हम इन्सानों को अपने ज़िन्दगी से अच्छी दूसरों की ज़िन्दगी लगती है। हमें जो मिलता है हम उसमें खुश नहीं रहना चाहते, हमेशा हमें जो भी मिलता है उसे हम खराब ही समझते है। इस बात का ज़िक्र बेहतर तरीके से शकुंतला देवी फ़िल्म में किया गया है। ये फ़िल्म मैंने रक्षा बंधन की रात अपनी बहन के साथ देखी।
हम अपने ऊपर वाले जनरेशन को हमेशा ये कहते है कि वो ये क्यों नहीं समझते, एक लाइफस्टाइल जो उनलोग ने सामान्य मान लिया है, वो सबके लिए सामान्य नहीं हो सकता। उसी तरह हमनें भी एक अच्छे पेरेंट्स की परिभाषा बना रखी है, हम ये भूल जाते है कि ‘ हमारी माँ बस एक माँ नहीं, एक औरत भी है ‘ और ‘ जब अमेजिंग बन सकते है तो नार्मल क्यों होना ?’ ऐसे कईं सवालों के साथ प्राइम वीडियो पर रिलीज़ हुई ह्यूमन कंप्यूटर ‘ शकुंतला देवी‘ की बायोपिक समाज के कईं मुद्दों पर प्रकाश डालने के साथ – साथ एक औरत के ज़िन्दगी से प्रेरित होना सिखाती है।
समीक्षकों ने फ़िल्म को अपने तरीके से जांचा और रिव्यु भी दिया है, मैंने यहाँ बस ओपिनियन रखने की कोशिश की क्यों कि मैं भी अपनी माँ से कईं बार कह देती हूँ कि आप दूसरी माँओं की तरह क्यों नहीं हो। फ़िल्म में एक बात हमेशा दोहराई गई है ‘ तुम माँ बनोगी तब तुम्हें समझ आएगा’, शायद यही बातें हमारी माँ भी हमसे कह दिया करती है। हम एक कामयाब औरत यानि ‘किसी बड़ी औरत’ के पीछे उसके इस समाज में सेट होने के स्ट्रगल को नज़रअंदाज़ कर देते है , एक औरत हर कदम पर महत्वाकांक्षी होने के कारण जज होती है या फिर स्वार्थी कहलाती है।
विद्या बालन एक एक्टर के तौर पर मुझे हमेशा पसंद रहीं हैं और इस फ़िल्म के बाद थोड़ी और पसंद आने लगी हैं। सान्या मल्होत्रा और जिषु सेनगुप्ता ने भी मनमोहा है। मूवी के डायलॉग्स को अच्छी तरीके से बिठाने के लिए इशिता मोइत्रा को धन्यवाद, क्योंकि उसके बिना ये मूवी एक बड़ी औरत बनने का सपना सही से दिखा नहीं पाती। मुझे ये बस एक बायोपिक से ज़्यादा कईं सवालों का जवाब देती हुई फ़िल्म लगी और मैं खुश हूँ कि मैंने इसे जल्द ही देख लिया।
अच्छा लिखा है और उतना ही सच । उम्मीद करता हूँ कि मूवी भी उतनी ही अच्छी होगी हालांकि मैं हमेशा विद्या बालन की सोलो मूवीज़ पसंद करता हूं पर अभी तक ये फ़िल्म देखी नही ।
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