रक्षा बंधन से जुड़ी यादें (Story Series)

raksha bandhan
  • पहली कहानी – वो सबसे यादगार रक्षाबंधन

कुछ दिन पहले ही हमारी भयानक वाली बहस हुई थी, ना मैं उससे बात कर रहा था ना वो मझे देखना भी पसंद कर रही थी। गुस्से में उसने घर में ऐलान कर दिया था कि इस साल वो मुझे राखी नहीं बांधेगी, मैंने भी अपने अंहकार को ज्यादा इज़्ज़त देते हुए कहा था, “जाओ, जाओ, मुझे भी नहीं बंधवानी राखी तुमसे, देखते है किसको बांधोगी और मुझे पैसे भी तो देने नहीं पड़ेंगे।” यूं ऐठ कर जवाब दिया मैंने जैसे पैसे तो मैं ही देता हूं, मम्मी की शक्ल मेरी ओर इसके बाद ऐसे घूमी जैसे मैंने एक लाइन में उनकी पूरी जायदाद अपनी बता दी हो। दीदी तो कभी कहा नहीं उसे, मगर उस दिन लगा बड़ी बहन का अहम पूरा दिखा रही है वो और इसी लड़ाई के साथ कब दस दिन बीत गए पता भी नहीं चला ।

राखी का दिन आया, सब कुछ भूल कर मैं एकदम सुबह उठा नहाने जाने के लिए। अब ये बड़ी बहनों की शान डूब जाएगी, पीछे से टोक दिया, ” आज कुछ ख़ास है क्या मम्मी? कोई जल्दी उठ कर नहा रहा है, मैंने तो अभी तक ब्रश भी नहीं किया।” आमतौर पर वो मेरे से पहले नहा कर तैयार होती थी और मुझे नहाने की जिद्द करती थी ताकि जल्दी से राखी बांध सके और ये सुनने के बाद मैंने नहाने का प्लान कैंसल कर दिया।

” उसी को लड़ाई रखनी है , तो मैं क्यों दिखाऊं कि आज राखी है तो थोड़ा लड़ाई कम कर देते है, मुझे भी अब फर्क नहीं पड़ रहा। बड़ी है तो क्या, गुस्सा बस उसको ही नहीं आता।” मैंने अपने मन में खुद को पूरी तरह से सांत्वना देने की कोशिश की, खुद को ये बता रहा था कि मैं एकदम सही कर रहा हूं, गलत तो वो है।

तभी अचानक मेरा फ़ोन बजा और कॉल पर थे मेरे पापा, मैंने सोचा जरूर कुछ ना कुछ कहेंगे मगर कॉल उठा ही लिया। ‘ तब राखी बांध लिए?’

‘ नहीं ‘“, इससे ज्यादा कुछ कहने को था नहीं मेरे पास।

नहीं बांधे??? अरे, देर क्यों कर रहे हो? मैंने मम्मी को कहा है तुम्हें भी हज़ार रुपया देने बाकि दो हज़ार दीदी को दे देना।”

“जी पापा, बस नहाने ही जा रहा था।” मेरी आवाज़ मानो एकदम से बदल गई, अरे हज़ार रुपए की बात थी और अब तो राखी बंधवा कर ही रहूंगा।

मैं तुरन्त मम्मी के पास गया और ज़ोर – ज़ोर से कहने लगा, ” ये रक्षा – बंधन के दिन लड़ना जरूरी है क्या? कम से कम सब पूछेंगे तो हम क्या बोलेंगे कि हमने राखी मनाई ही नहीं इस साल?” मम्मी मुस्कुराई और दीदी के पास गई, शायद उसे कुछ समझाया और दीदी मान गई, मैं भी तुरन्त नहाने चला गया और तैयार हो कर बैठ गया।

जब तक दीदी तैयार हो रही थी, तब लगा कि गलती तो मैंने ही की थी और खामखां हमारी लड़ाई हुई। टेबल पर से एक पेपर और पेन लिया, सॉरी लिख कर राखी वाले पैकेट में डाल दिया, अब मुंह से बोलने की हिम्मत थी नहीं। दीदी आई और शायद हाथ में पेपर के साथ, पेपर बगल में रख के बोली, ” आकर भी कह सकता था, मैंने तेरे लिए तेरे पसंद के लड्डू पहले ही मंगा रखे थे।”

और हम दोनों ज़ोर का हंसने लगे।जो भी हुआ, वो रक्षा बंधन अब तक के सभी रक्षा बंधन में से यादगार है।

  • दूसरी कहानी – रक्षा बंधन के सही मायने


“पिछले साल बगल में रह रही बुआ ने हमें चिढ़ाया था, अब फिर से ये दिन आ रहा। क्या इस साल हम दोनों एक दूसरे को राखी नहीं बांधेंगे? “, उसने मुंह बनाते हुए मिष्टी ने अपनी बड़ी बहन ‘ खुशी ‘ से पूछा। बड़ी बहन भी क्या कहती खुद भी तो मुश्किल से सात साल की थी, समझ और ज्ञान छोटी बहन से कुछ भी ज़्यादा नहीं था। दोनों बहन मुंह बना कर अपनी मां के पास गई, तभी खुशी ने मिष्टी से कहा, ” तू पूछ ना मां से ।”
” नहीं दीदी, तुम पूछो।
खुशी ने अपनी मां को टोका, ” मां , इस बार रक्षा बंधन पर हम एक दूसरे को राखी नहीं बांधेंगे?”
मां ने अपना काम छोड़ कर दोनों के तरफ़ घूरते हुए देखा, ” किसने कहा ऐसा तुमसे? पापा तो आज राखी खरीदने गए है फिर ये सवाल क्यों पूछ रही हो तुम दोनों?” ये कहकर मां ने बेटियों को पास बिठाया, और ये सुनते ही उन दोनों के चेहरे पर जो डर था वो मानों कहीं खो सा गया हो।
” मां, हम दोनों पिछले साल राखी बांध कर रानी को दिखा रहे थे तो उसकी बुआ ने बोला था कि भाई को राखी बांधी जाती है और तुम दोनों के पास कोई भाई नहीं। “, मिष्टी ने शिकायत करते हुए अपनी मां से कहा।
” रक्षा का मतलब होता है किसी के साथ जरूरत पड़ने पर हमेशा रहना, तुम दोनों में से किसी को कुछ होता है तो कौन साथ देता है?”
दीदी”, मिष्टी ने झट से जवाब दिया।
” और दीदी का साथ कौन देता है , तुम, तो राखी उसी को बांधी जाती है जो आपकी रक्षा करें। फिर उसके लिए भाई हो या ना हो क्या फर्क पड़ता है। मैंने तो मिठाई और चॉकलेट दोनों मंगा रखे है, तो तुम दोनों राखी की तैयारियां कर लो वरना ये सब मिठाई और चॉकलेट रानी के भाई को दें दूंगी।”
” नहीं मां, हम दोनों राखी इस साल भी मनाएंगे।”
बस इतना कहकर खुशी और मिष्टी अपनी मुस्कुराहट वापस लिए मां के पास से चली गई।

  • तीसरी कहानी – लॉन्ग डिस्टेंस राखी

वो ताक लगाए कई दिनों से बैठा था, आज राखी आएगी या कल आएगी। रोज़ घर पर फ़ोन घुमाता और पूछता कि राखी कब भेजा है? हर साल तो राखी के दिन पर किसी भी हाल में छुट्टी लेकर कॉलज से घर चला जाता था, अब इस साल नौकरी लगी और मुश्किल से एक दिन की छुट्टी। घर जाने में ही दो दिन लगेंगे, तो इस बार रक्षा बन्धन लॉन्ग डिस्टेंस वाला ही होगा। शुक्र मनाया उसने कि डिजिटल ज़माना है तो वीडियो कॉल पर बात हो जाएगी। ये सब उथल – पुथल मन में चल रहीं थी तभी दरवाज़ा बजा और उसने तुरन्त जाकर दरवाज़ा खोला। दरवाज़े पर कुरियर वाले को देख चेहरा एकदम से खिल गया, तो दीदी और छुटकी की राखी आ गई मेरे पास।
तुरन्त मोबाइल उठा कर कुरियर के साथ सेल्फी ली और दीदी को भेज दिया। ‘ थैंक यू फॉर द राखी ‘
दीदी ने भी इमोजी से अपनी खुशी ज़ाहिर की। ख़ुशी इतनी थी कि दो दिन पहले ही राखी का वो लिफ़ाफा खोल लिया और अंदर पड़ी दोनों राखियां निकाली। अरे ये क्या, साथ में एक पेपर भी है।
आज के ज़माने में ये चिट्ठी कौन लिखता है?
पेपर को खोला तो जो सोचा वही पाया, छुटकी ने चिट्ठी लिखी थी।

‘ हैलो भैया,
रक्षा बंधन पर आ तो नहीं रहें, इसलिए थोड़ा नाराज़ हूं मगर राखी भिजवा कर मैंने अपना काम कर दिया, तुम भी झट से मेरा गिफ्ट भेज दो। मैं तुम्हें वॉट्सएप पर एक लिंक भेजूंगी, राखी के दिन मेरा गिफ्ट ऑर्डर हो जाना चाहिए। वरना अगले साल से मेरी राखी नहीं मिलने वाली है तुम्हें।”
छुटकी

ये पढ़ कर उसकी आंखे हल्की भींग गई, लेकिन चहरे पर बड़ी सी मुस्कान थी। तभी एक बार के लिए मां की याद आ गई कि कैसे इतने साल से अपने भाई को दूर से ही राखी भेज रही है। ये बचपन ही ज्यादा अच्छा था , कम से कम रिश्तों को निभाने का बोझ कम था। और इसी के साथ उसने चिट्ठी मोड़ कर फिर से लिफ़ाफे के अंदर डाल दी।

1 thought on “रक्षा बंधन से जुड़ी यादें (Story Series)”

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