My younger sister is a student of Architecture, she is just in her 2nd semester right now. She was telling me one day, “We have more girl students in the college but in the country, the professional architects are more boys”.
Then do you know where the problem is? I was in a girl’s college, we had 56 strength in the class but I hardly saw 15 or 20 of us working, and it was a professional degree. When I moved to the working places, the number of female employees were hardly 2 or 3 among 20 but the interns in the place are mostly girls who are college students. If we talk about Bihar, most of the boys move out, even girls too but they are less( I can say this because I have male and female friends both since school) but where do these girls go?
Some are married in their early 20s, and then in-laws or husbands don’t allow them to struggle or work after marriage and they happily accept it because they never got the time to dream and think about themselves. Some work before marriage and get married in mid-twenties and quit their jobs after marriage or kids because they can’t handle the pressure of working and managing home together. And the ones who are left are the bad women of society, who are selfish.
Thank you!!!
ये पोस्ट मैंने कुछ दिनों पहले अपने फेसबुक वॉल पर लिखी थी, ये मेरे और मेरी बहन के बातचीत पर आधारित थी। इस पोस्ट के बाद मुझे इस पर एक डिटेल ब्लॉग लिखने का परामर्श मिला . बात भी सही है कि अगर इस विषय पर मैं या आप कुछ कहें तो बहस छिड़ जाएगी। कई के ईगो को ठेस पहुँचेगी या किसी को आईना दिखाने वाली बात होगी। हमारे देश में अभी भी महिलाएं आश्रित जनसंख्या का हिस्सा है , जहाँ एजुकेशन रेट में सुधार हुआ है वही रोज़गार क्षेत्र में महिलाएं अभी भी काफी पीछे है। समाज के सोच पर बात की जाए तो अभी भी ये समाज यही मानता कि महिलाओं का काम घर संभालना, किचन देखना ही है , वो बाहर काम सिर्फ मज़बूरी में कर सकती है इसलिए बहु आजकल पढ़ी- लिखी चाहिए मगर नौकरीपेशा नहीं होनी चाहिए।
हमारे देश में एक मिडिल क्लास परिवार की बात करें तो लड़की के 20 होते – होते घरों में शादी की बातें होने लगती है , और उस 20 साल की लड़की के लिए एक वेल – सेटल्ड लड़के की खोज होती है , जो ज़्यादातर 28 या 30 के ऊपर के उम्र के लड़के होते है , ऐसे में बेटियों को financially इंडिपैंडेंट होने का मौका दिया नहीं जाता। जब तक वो इसकी महत्ता समझे तब तक पति द्वारा कह दिया जाता है , ‘ तुम्हें नौकरी करने की क्या जरूरत , जो कुछ चाहिए वो मैं पूरा कर दूँगा। ‘
शादी करके लड़कियाँ अपनी डिग्री तो पूरी कर लेती है , मगर प्रोफेशनल वर्ल्ड से दूर हो जाती हैं। एक लड़की के पेरेंट्स भी बेटी को यही कहते है कि अगर ससुराल वालों ने इजाज़त दी तभी तुम बाहर काम करना।
कुछ दिनों पहले मेरी बहन अपने दोस्त के घर गई , उसके घर पर उसकी मौसेरी बहन की बेटी हमेशा मिलती थी उस दिन वो वहां नहीं थी। मेरी छोटी बहन ने उससे पूछा, ‘ क्या दीदी आज बैंक नहीं गई???’ , उसकी दोस्त ने बताया कि उन्होंने अपने सरकारी बैंक की नौकरी छोड़ दी। मेरी बहन को ये जानने की उत्सुकता हुई कि एक माँ जो अपनी तीन महीने की बेटी को अपने मौसी के घर छोड़ जाया करती थी, वो बेटी आज 4 साल की होने वाली है फिर ये नौकरी क्यों छोड़ रही है?तो मेरी बहन की दोस्त ने उसे बताया कि वो दोबारा प्रेग्नेंट है और उनका कहना है कि जो ‘ दुःख’ उनके नौकरी की वजह से उनकी बेटी ने झेला है वो दुःख वो अपने अगले बच्चे को नहीं देना चाहती। जबकि उनकी बेटी अपनी माँ से उतना की लगाव रखती है जितना किसी भी बच्चे को अपनी माँ से होगा।
एक सरकारी बैंक में नौकरी पाने के लिए ना जाने कितने ऐसे कैंडिडेट हर साल परीक्षा देते हैं , उनमें से कुछ ही चुने जाते हैं . . बिहार जैसे राज्य में बैंक की परीक्षा देने वाले छात्रों की संख्या अधिक है और बहुतों ने तो अपने कईं साल इस परीक्षा के पीछे बिता दिए। ऐसे में एक इंसान वो नौकरी छोड़ रहा है, ये अपनी क्षमता और ज्ञान का मज़ाक बनाने जैसा ही है।
बात करें उन लड़कियों या औरतों की जो शादी के बाद भी नौकरी करती हैं। तो एक चीज़ होती है, जो औरतों में थोड़ी ज़्यादा होती है, उसे कहते है ‘ अपराध – बोध ‘ . औरतों को ये एहसास दिला दिया जाता है कि उनकी नौकरी सिर्फ उनके स्वार्थ की वजह से है , उनके एक नौकरी के कारण उनका घर ठीक से नहीं चल पाता , वो अपने बच्चों का ध्यान ठीक से नहीं दे पाती , या अपने पति के कपड़े समय पर इस्त्री नहीं करती। उनके सास – ससुर उनकी वजह से भूखे रह जाते है , और ना जाने कितने ऐसी ग़लतियाँ उन्हें याद दिलाई जाती है। औरत की असली जगह घर में होती है, अगर वो किसी भी तरीके से अपना करियर बनाना चाहती है तो उसे अपने जिम्मेदारियों को पहले पूरा करना है मगर पति की ज़िम्मेदारी बस पैसे लेकर देने की होती है। अगर गलती से कोई पार्टनर साथ में मदद कर दे तो उसके लिए इस समाज ने एक नाम दिया है – जोरू का गुलाम ‘.
मेरा ये ब्लॉग पुरे तरीके से मेरी सोच पर आधारित है, ये सोच हमारे आसपास हो रही घटनाओं को देखकर ही निर्माण हुआ है। वैसे आप खुद समझदार है अपनी सोच बनाने के लिए ….
Read a report published on ‘Ideas for India’, dated 7th March 2019.
100 true…..
ये आईना बिलकुल सही है और ये पूरे भारत वर्ष की अवस्था को दर्शाता है।
ये बिल्कुल सही बात है, बाक़ी राज्यों का पता नहीं पर हमारे राज्य में ये बहुत आम बात है । धीरे धीरे बदलाव जरूर आ रहा है पर इसकी वृद्धि और गति दोनो ही बहुत धीमी है । कुछ ऐसे भी लोग है जो इस चीज़ को बदलना चाहते है पर समाज की नकारात्मक सोच की जकड़ जब मज़बूत होती है तो हार मान लेते है । आज भी गाँव में शिक्षा तो जैसे तैसे मिल रही है पर उसी नकारात्मक सोच के साथ । हालांकि मैं शायद ख़ुशनसीब हुँ की ऐसे घर मे पैदा हुआ जहाँ की सोच ऐसी नहीं पर लोगो की बातों का सामना करना ही पड़ता है । जबतक मेरी दीदी की शादी नही हुई थी मेरे पिता से ज़्यादा लोगो को चिंता रहती थी । अब बेटी 25 की हो गयी अब 29 की हो गयी ये सुन्ना तो आम बात है कभी कभी तो और भी बहुत कुछ सुनने मिला । हालांकि ये कमेंट है इसलिए रोक देता हूँ । ऐसे विषय पे लिखना तो आप बखूबी जानती है, पूजा । ऐसे ही लिखते रहिये एक एक हथौड़े से से दीवार गिरेगी ।
Ye bilkul Sach hai.. har ek baat har ek shabd.
Bilkul sahi bat kahi h apne aj ladkiyon ke liye pdhai ko jrur important Mana jata h PR sirf samaj me status maintain krne ke liye na ki carrier bnane ke liye.
Well written, true, but so painful…
Loved it!
सारी बातें बहुत आसानी से कह दिया गया है।बहुत अच्छा है और सच्चाई को लिखा है। लड़कियों का बाहर जाकर पैसे कामना ही मकसद नहीं होता उनके कुछ सपने होते हैं जो समाज की पाबंदियों के कारण नहीं पूरे हो पाते हैं।ये हमारे लिए दुखद है।
बिल्कुल सही बात है, किसी ना किसी वजह से लड़कियों को ही बलिदान देना पड़ता है। कभी अपने बच्चों के परवरिश के लिए तो कभी अपने घर के खुशी के लिए। और बहुत से कारण हैं जिससे लड़कियों को अपनी शिक्षा से अलग होना पड़ता है।
लेकिन फिर भी कुछ लोग अभी भी हैं जो इस मानसिकता को बदलना चाहते हैं।
Bitter reality of society!